ॐ आब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौऽतिव्याधि महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्ध...
ॐ आब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौऽतिव्याधि महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायाताम् । निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम् योगक्षेमो नः कल्पताम्। मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
हे भगवान्। अपन देशमें सुयोग्य आओर सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आओर शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दिअ बाली, बड़द ओजन वहन करएमे सक्षम होथि आओर घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होअए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आओर युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आओर नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आओर मित्रक उदय होए॥
टिपण्णी सभ