अथ वसन्तपञ्चम्यां सरस्वती पूजाविधिः

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अथ वसन्तपञ्चम्यां सरस्वती – पूजाविधिः माघशुक्लपञ्चमी वसन्तपञ्चमी। तत्रकृतनित्यक्रियो व्रती पूजास्थानमागत्य शुद्धासने पूर्वाभिमुख उद...


अथ वसन्तपञ्चम्यां सरस्वती – पूजाविधिः

माघशुक्लपञ्चमी वसन्तपञ्चमी। तत्रकृतनित्यक्रियो व्रती पूजास्थानमागत्य शुद्धासने पूर्वाभिमुख उदङ्मुखो वा उपविश्य, “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा” इति पठित्वा कुश-त्रय सहित जलेन विष्णुं ध्यायन् पुजोपकरणद्रव्याणि आत्मानं चाभिषिच्य सूर्यादिपञ्चदेवताः विष्णुं च पञ्चोपचारैः संपूज्य कुशत्रयतिलजलान्यादाय-

माघशुकलपञ्चमी वसन्तपञ्चमी कहवैछ। ताहिमे व्रती स्नानादि नित्य क्रिया कय पूजा-स्थानमे शुद्ध आसन पर पूव वा उत्तर मुहें वैसि तेकुशा सहित जल लय “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा” इत्यादि मन्त्र पढ़ि विष्णुक धिआन करैत पूजा सामग्री तथा अपना शरीरके शिक्त कय सूर्य, गणेश, अग्नि, दुर्गा, शिव पञ्चदेवता तथा विष्णुक आवाहन पूर्वक पञ्चोपचार पूजा कय कुश आदि लय-

ॐ अद्य माघे मासि शुक्ले पक्षे पञ्चम्यां तिथौ, अमुक गोत्रस्य मम श्रीमदमुकशर्मणः सपरिवारस्य (नानागोत्रानां नानानामधेयानामध्यापकानां छात्राणां च) उपस्थितशरीरविरोधेन चतुर्वर्गफलप्राप्तिपूर्वक निर्विघ्नतया सकलशास्त्र-ज्ञानप्राप्तिकामोयथाशक्ति गन्धपुष्पधूपदीपनैवेद्यताम्बुलमाल्यवस्त्रालङ्कारणणादिभिः साङ्गसवाहनसपरिवाराया भगवत्याः श्रीसरस्वतीदेव्याः पूजनमहं करिष्ये.

परार्थ  “करिष्यामि” इति संकल्प्य कलशस्थापनं कुर्यात् तत्र क्रम-त्रिकुशहस्तः –

ई सङ्गकल्प कय कलशस्थापन करथि। आनक हेतु पूजा केनिहार संकल्प वाक्यमे “करिष्ये” के स्थान पर “करिष्यामि कहथि। कलश स्थापन कय विधि-तेकुशा हाथेँ

ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि व्विश्वधाया व्विश्वस्य भुवनस्य धर्त्रों। 
पृथ्वी यच्छ पृथ्वीं दृँ ह पृथ्वीं मा हिँ, सीः।।

इति भूमिं स्पृष्ट्वा- एहि मन्त्रे भूमिक स्पर्श कय।

ॐ मा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः।
 मा नो व्वीरान् रूद्र भामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्वा हवामहे।।

इति मन्त्रेण तदुपरि यवान्विकीर्य-

एहि मन्त्र सँ ओहि स्थानमे यव छीटि-

ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा व्विशन्ति्वन्दवः।
पुनरुर्ज्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्त्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुन र्मा विशताद्रयिः।।



इति यवोपरि कलशं स्थापयेत्। ततः-

एहिमन्त्रे यव पर कलश राखथि। तखन



ॐ व्वरुणस्योत्तम्भनमसि व्वरुणस्य सकम्भसर्जनी स्थो व्वरुणस्यऽऋतसदन्यसि।
व्वरुणस्यऽऋत सदनमसि व्वरुणस्यऽऋत सदनमसीद।।


इति कलशे जलं दत्त्वा- एहि मन्त्रेँ कलशमे जल दय

ॐ याः फलिनी र्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। वृहस्पतिप्रसूता स्ता नो मुञ्चत्वँ हसः।।


इति कलशे फलानि दत्त्वा- एहि मन्त्रे कलशमे सुपारी दय



ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन।


सशत्यश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्।।



इति कलशे आम्रपल्लवां दद्यात्। ततः-एहि मन्त्रे कलशमे आमक पल्लव देथि। तखन-

ॐ काण्डात्काण्डत्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि।

एवा नो दुर्व्वे प्रतनु सहस्त्रेण शतेन च।।


इति कलशे दूर्वादलम्प्रक्षिप्य-एहि मन्त्रे कलशमे दूवि दय

ॐ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा।।


इति कलशे पर्ण पत्राणि दद्यात्-ततः-एहि मन्त्रे कलशमे पानक पात देथि। तखन-

ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।

स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।


इति कलशे पञ्चरत्नं तन्मूल्यं द्रव्यं वा प्रक्षिपत् ततः- पूर्ण शरावादिपात्रं दीपसाहितमादाय


एहि मन्त्रे कलशमे (सोन, हीरा, नीलमणि, पद्मराग मणि, मोती) पञ्चरत्न वा तकर मूल्य द्रव्य देथि तखन चाउर भरल शरवामे दीप राखि

ॐ अग्निज्योर्तिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा, सूर्यो ज्योर्तिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा, अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा, सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा, ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा।।

इति कलशोपरि पूर्वाभिमुखं दीपं निदध्यात्. ततोऽक्षतमादय प्राणप्रतिष्ठां कुर्यादनेन-
एहि मन्त्र सँ कलशपर पूवमुहेँ दीप राखथि. तखन अक्षत लय अगिला मन्त्रे प्राणप्रतिष्ठा करथि-

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य ब्रिह्स्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टं यज्ञँ समिमन्दधातुविश्वेदेवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ। 
ॐ शान्तिकलश-इह सुप्रतिष्ठतो भव
 ॐ शान्तिकलशाय नमः।।

इति यथासम्भववोपचारैः कलशं सम्पूज्य पुनरक्षतमादाय- 
उक्त वाक्य सँ कलशक पञ्चोपचार पूजा कय वस्त्र माला आदि सँ कलशके सुशोभित कय पुनः अक्षत लय

ॐ कलशाधिष्ठितगणेशादिदेवता इहागच्छत इह सुप्रतिष्ठा भवन्तु।।

 ॐ कलशाधिष्ठितगणेशादिदेवताभ्यो नमः।।

इति पञ्चोपचारैः सम्पूज्य पुनरक्षतमादाय-एहि वाक्येँ पञ्चोपचार पूजा कय पुनः अक्षत लय

ॐ इन्द्रादिदशदिक्पाला इहागच्छत इह तिष्ठत। 

ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः।

इति पञ्चोपचारैः सम्पूज्य पुनरक्षतमादाय-एहि वाक्येँ पञ्चोपचार पूजा कय पुनः अक्षत लय

ॐ सुर्यादि नवग्रहा इहागच्छत इह तिष्ठ।

 ॐ सूर्यादि नवग्रहेभयो नमः।

इति पञ्चोपचारैः सम्पूज्य, शालग्रामे, घटे, मूर्तौ वा सरस्वतीं देवीमावाह्य विविधोपचारैः पूजयेत-तद्यात-

एहिवाक्येँ पञ्चोपचार पूजा कय शालग्राम, कलश, वा मूर्तिमे सरस्वती देवीक आवाहन कय नाना प्रकार वस्तु सँ पूजा करथि से जेना

करकच्छपिकां बध्वा- 

हाथ जोड़ि अगिला मन्त्र पढ़ति-

ॐ आगच्छ भक्तिसुलभे सर्वाभरणभूषिते।

क्रियमाणां मया पूजां गृहाण परमेश्वरि।।

इत्यावाह्य, पुष्पाक्षतैरनामिकाङ्गुष्ठाभ्यां देव्या हृदये-

एहि मन्त्रेँ आवाहन कय अनामिका अङ्गुठा सँ फूल अक्षत लय देवीक हृदयमे-

ॐ मनो जूतिर्जुषातामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टं यज्ञ् समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ।।

ॐ ह्रीँ भूर्भवः स्वः भगवति श्री सरस्वती देवि! इहागच्छ इह तिष्ठ सुप्रतिष्ठता भव।।

इति प्राणप्रतिष्ठा विधाय ध्यायेत्-

एहि प्रकारेँ प्राण प्रतिष्ठा कय उज्जर फूल लय हाथ जोड़ि ध्यान करथि-

ॐ तरुणसकल-मिन्दोर्विभ्रती शुभ्रकान्तिः, कुचभरन-मिताङ्गी सन्विषण्णा सिताब्जे। निजकरकमलोद्यल्लेखनी पुस्तकश्रीः, सकलविभव-सिद् पातुध्यै वाग्देवता नः।। ॐ शुक्लां ब्रह्मविचारसार-परमांद्यां जगद्व्यापिनीं, वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्। हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्, वन्दे ताम्परमेश्वरीम्भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।। इदं ध्यानपुष्पं भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

इति ध्यान पुष्पं समर्प्य स्वागतं कुर्यात्-

एहि वाकयेँ ध्यान कय फूल अर्पित कय हाथ जोड़ि स्वागत करथि-

ॐ स्वागतं ते  महाभागे हंसवाहिनि वत्सले। 

धन्योऽस्म्यनुगृहीतोऽस्मि स्वागतेन  तथानघे।।

पाद्यामादय- पैर धौएवाक जल लय

जलं सुशीतलं स्वच्छं मया भक्त्या समर्पितम्। 

पाद्यं गृहाण देविशि शुभं मार्गश्रमापहम्।। 

इदं पाद्यं भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।


अर्घ्यमादाय- शङ्खमे जल चानन अक्षत उज्जर फूल दुवि लय

ॐ दूर्वाक्षतसमायुक्तं गन्धपुष्पाधिवासितम्।

सुजलं शंखपात्रस्थमर्घ्यं देवि गृहाणमे।।

इदमर्घ्यं भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

आचमनीयं जलमादाय- आचमन हेतु आचमनीमे जल लय

ॐ गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाऽहृतम्।

आचम्यतां जगन्मातः सुजलं श्रान्तिहारकम्।।

इदमाचमनीयम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

मधुपर्कमादाय-काँसक पात्रमे दही घी चीनी मधु लय

मध्वाज्यशर्करामिश्रं कांस्यपात्रस्थितं दधि।

मधुपर्कं गगृहाणेमं मया भक्त्या समर्पितम्।।

एष मधुपर्कः भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

इदम्पुराचमनीयम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

स्नानीयं जलमादाय- शंखमे नहेवाक जल लय

ॐ जलं च शीतलं स्वच्छं नित्यं शुद्धं मनोहरम्।

स्नानार्थं ते प्रयच्छामि वागीश्वरि गृहाण तत्।।

इदं स्नानीयम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

पुनः आचमनीयमादाय- पुनः आचमन हेतु आचमनीमे जल लय

ॐ स्नानादिकं विधायापि यतः शुद्धिरवाप्यते।

पुनराचमनीयं हि वागीश्वरि प्रगृह्यताम्।।

इदम्पुनराचमनीयम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

वस्त्रमादाय- वस्त्र लय

ॐ तन्तुसन्तानसंयुक्तं कलाकौशलकल्पितम्।

सर्वाङ्गाभरणश्रेष्ठं वसनं परिधीयताम्।।

इदं वस्त्रं बृहसपतिदैवतम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः

इदम्पुनराचमनीयम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

चन्दनमादाय- श्रीखण्ड चानन लय

ॐ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।

विलेपनं सुरश्रेष्ठे प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्।।

इदुमनुलेपनम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

सिन्दूरमादाय – सिन्दूर लय

ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनां भूषणाय विनिर्मितम्।

तद् गृहाण महाभागे भुषणानि प्रयच्छमे।।

इदं सिन्दूरम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

अक्षतमादाय- अक्षत लय

ॐ अक्षतं धान्ज्यं देवि ब्रह्मणा निर्मितम्पुरा।

प्राणदं सर्वभूतानां गृहाण वरदे शुभे।।

इदमक्षतम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

पुष्पाण्यादाय-फूल लय

ॐ पुष्पं मनोहरं दिव्यं सुगन्धिं देवनिर्मितम्।

हृद्यमद्भुतमाघ्रेयं देवि दत्तं प्रगृह्यताम्।।

एतानि पुष्पाणि भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

विल्वपत्रामादाय- वेलपात लय

ॐ अमृतोद्भवं श्रीवृक्षं शङ्करस्य प्रियं सदा।

पवित्रं ते प्रयच्छामि विल्वपत्रं सुरेश्वरि।।

एतानि विल्वपत्राणि भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

धुपमादाय- धूप लय

ॐ वनस्पतिरसो दिव्यो गन्धर्वासुरभोजनः।

मया निवोदितो भक्त्या धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।

एष धूप भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

दीपमादय-दीप लय

ॐ कार्पासं घृतसंयुक्तं वह्निना योजितम्मया।

दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।

एष दीप भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

नैवेद्यमादाय-नैवेद्य लय

ॐ नैवेद्यं घृतसंयुक्तं नानारस-समन्वितम्।

मया निवोदितम्भक्त्या गृहाण सुरपूजिते।।

इदं नैवेद्यम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

ततो मोदकमादाय – तखन लड्डू लय

ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं कर्पुरादिभिरन्वितम्।

मिश्रं नानाविधैर्द्रव्यैर्गृहाण सुरपूजिते।।

एतानि मोदकनैवेद्यानि भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

पानीयं जलामादाय- पीवाक जल लय

ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं सुगन्धिं सुमनोहरम्।

जीवनं सर्वभूतानां गृहाण वरदे शुभे।।

इदं पानीयं जलम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

फलनैवेद्यमादाय- नानाप्रकारक फल नैवेद्य लय

ॐ फलमूलानि रम्याणि ग्राम्यारण्यानि यानि च।

नानाविधसुगन्धीनि गृहाण जगदम्बिके।।

एतानि फलनैवेद्यानि भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

आचमनीयं जलमादाय- अँचेवाक जल लय

ॐ आमोदवस्तुसुरभि जलमेतदनुत्तमम्।

गृहाणाचमनीयं त्वं मया भक्त्या निवेदितम्।।

इदमाचमनीयम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

ताम्बूलमादाय- पानसुपारी आदि लय

ॐ नागवल्लीदलं सवर्णवर्णं पूगादिसंयुतम्।

गृह्यतां जगतां मातवर्दनाम्भोजभूषणम्।।

इदं ताम्बूलम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

पुष्पमाल्यादाय- फूलक माला लय

ॐ सूत्रेण ग्रथितां मालां नानापुष्पसमन्विताम्।

गृहाण वरदे मातः श्रीयुक्तां सुमनोहरम्।।

इदं पुष्पमाल्यम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

सुगन्धिद्रव्यमादाय – अतरके फाहा लय

ॐ परमानन्ददं दिव्यं परिपूर्णं दिगम्बरम्।

सौरभं पुष्पसारं च गृहाण जगदम्बिके।।

इदं सुगंधितद्रव्यम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

आलक्तकमादाय- पैररङ्गा लय

ॐ त्वत्पादाम्भोजनखरद्युतिकारि मनोहरम्।

आलक्तकमिदं देवि कृपया परिगृह्यताम्।।

इदमलक्तकम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

कङ्कतिकामादाय-ककवा लय

ॐ केशप्रसाधनार्थमिमां कङ्कतिकाम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

दर्पणमादाय – एना लय

ॐ मुखावलोकनार्थमिदं दर्पणम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

भूषणं (भूषणार्थं द्रव्यं वा) समादाय- गहना (वा ताहि हेतु द्रव्य) लय

ॐ काञ्चनं राजतोपेतं नानारत्नसमन्वितम्।

भूषणार्थं च देवशि गृहाण वरदा भव।।

इदं भूषणार्थं द्रव्यम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।


अथ लक्ष्मीपूजनम्

प्रथमं ध्यातेत् तद्यथा- तखन लक्ष्मीक ध्यान करथि से जेना

ॐ पाशाक्षमालिकाम्भोज श्रृणिभिर्याम्यसौम्ययौः।

पद्मासनसंस्थां ध्यायेच्च श्रियं त्रैलोक्यमातरम्।।

गौरवर्णां सुरुपां च सर्वालङ्कार-भूषिताम्।

रौक्मपद्यव्यग्रकरां वरदां दक्षिणेन तु।।

इति ध्यात्वा पाद्यादि यथालब्धोपचारैः ॐ लक्ष्मीदेव्यै नमः, इति सम्पूज्य प्रार्थयेत्
ई ध्यान कय “आँ ह्रीँ क्लीँ भूर्भवः स्वः भगवति लक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ” एहि वाकयेँ  आवाहन कय उपस्थित सामग्री सँ “ॐ लक्ष्म्यै नमः” वाक्य सँ पूजा कय प्रार्थना करथि-

ॐ विश्वरूपस्य भार्यासि पद्मे पद्मालये शुभे।
सर्वतः पाहि मां देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।
ॐ नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात्।।

ततः ॐ पुस्तकभ्यो नमः, इति पुस्तकानि, ॐ लेखनीभ्यो नमः, इति लेखनीः मस्याधारेभ्यो नमः, इति मसीपत्राणि च सम्पूज्य आरार्त्तिकं कुर्यात्-

तखन “पुस्तकभ्यो नमः” कहि कय पुस्तकके “लेखनीभ्यो नमः” कहि मसिहानी कय पूजा कय अनेक मुहँवाला दीप तथा कर्पुर जराय आरति करथि

ॐ कर्पुरदीपसहितं दीपं नानामुखं च यत्।

नीराजनं महादेवि स्वीकुरुष्व मयार्पितम्।।

इदं नीराजनं साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायै भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

इदमाचमनीयम् भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै देव्यै नमः ।।

इत्याचमनीयं समर्प्य प्रार्थयेत्
एहि वाक्येँ आचमन कराय आँजुर भरि फूल लय

ॐ यथा न देवीं भगवान् ब्रह्मा लोकपितामहः।
त्वां परित्यज्य सन्तिष्ठेत् तथा भव वरप्रदा।।
वेदाः सर्वाणि शास्त्राणि नृत्यगीतादिकञ्च यत्।
विहीनं त्वया देवि तथा में सन्तु सिध्यः।।
लक्ष्मीर्मेवा परा पुष्टिर्गौरी प्रभा घृतिः।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती।।
एष पुष्पाञ्जलिः ॐ साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायै 
भगवत्यै श्रीसरस्वत्यै नमः।।

इति पुष्पाञ्जलिं समर्प्य प्रणमेदेभिः-
उक्त वाक्य सँ पुष्पाञ्जलि दय अगिला मन्त्रेँ प्रणाम करथि-

ॐ सा मे वसतु जिह्याग्रे वीणापुस्तकधारिणी।मुरारिवल्लभा देवी सर्वशुक्लासरस्वती।।नमो हरिप्रिये नित्यं सरस्वत्यै नमो नमः।वेदवेदान्तवेदाङ्ग विद्यां देहि नमोऽस्तु ते।।ॐ विशद कुसुमतुष्टा शुभ्रहंसोपविष्टा,धवलवसनवेषा मालती बद्धकेशा।शशधरकरवर्णा शुभ्रजा तुङ्गहस्ता,जयति जितसमस्ता भारती सुप्रशस्ता।।यन्मया भक्तियोगेन पत्रं पुष्पं फलं जलम्।निवेदितं च नैवेद्य तद् गृहाणानुकम्पया।।मन्त्रहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं सुरेश्वरि।यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशम्म्या।दासोऽयमिति मां मत्वा प्रसीद परमेश्वरि।।आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व जगदीश्वरि।।वागीश्वरी जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।गृहाणाचार्मिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि।।

इति प्रणम्य हवेनच्छायां कुशकण्डिका विधिना वह्निं संस्थाप्य “ॐ ऐँ सरस्वत्यै नमः स्वाहा” इति मन्त्रेणाष्टोत्तरंशतं सहस्त्रं वा जुहुयात्
सायंकाले कृतसायंकृत्यः, आचमन-धूपदीप-नैवेद्यानि समर्प्य आरार्तिकं विद्या स्तुति-गीतवाद्याद्युत्सवै रात्रिं क्षिपेत्

इत्यादि स्तुति एवं प्रणाम कय  होमक इच्छा हुए तँ आन ठाम कहल कुशकण्डिका विधि सँ अग्निस्थापन कय “ॐ ऐँ सरस्वत्यै नमः स्वाहा” एहि मन्त्र सँ  108 अथवा 1000 हवन करथि। सन्ध्या काल धोती बदलि सन्ध्योपासन कय आचमन, धूप, दीप, नैवेद्य  अर्पित कय पुनः आचमन करायआरती कय स्तुति, गीत, वाजा आदि सँ महोत्सव करैत राति वितावथि।।

अथ श्रीसरस्वतीविसर्जनम्

प्रातः कृतनित्यक्रियो व्रती पाद्याद्युपचारैः. देवीं सम्पूज्य नीराजनम्विधाय यथाशक्ति स्तुतिं पठित्वा

प्रातःकाल व्रती नित्यक्रिया कय पाद्य आदि उपचार सँ कलश कलशस्थित गणेश, इन्द्रादिदशदिक्पाल सूर्यादि नवग्रह, तथा श्रीसरस्वती देवीक पूजा आरती कय यथाशक्ति स्तुति पढ़ि

ॐ रूपं देहि जयन्देही भाग्यम्भगवति देहि मे।विद्यां देहि धनं देहि सर्वान्कामान्प्रदेहि मे।।विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदर्चितम्।पूर्णं भवतु तत्सर्वं त्वतप्रसादान्महेश्वरि।।शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्त्तुं ब्रह्मादयः सुराः।अहं किं वा करिष्यामि मृत्युधर्मा नरोऽल्पधीः।।नजानेऽहं शरीरं ते न स्वरुपं न वा गुणान्।एकामेव हि जानामि भक्तिं त्वच्चरणाब्जयोः।।तस्मात्सम्भाव्य भक्तिं में मदीयार्चाम्प्रगृह्य च।गच्छ देवि निजं स्थानं मह्यं दत्त्वा वरान्बहून्।।

इति प्रार्थयेत्-ततो देव्याश्चरणां स्पृष्ट्वा-
ई प्रार्थना करथि. तखन सरस्वती मूर्तिक चरण छूवि-

ॐ उत्तिष्ठ त्वं महाभागे शुभां पूजां प्रगृह्य मे।कुरुष्व मम कल्याणमष्टााभिःशक्तिभिस्सह।।ॐ वागीश्वररि जगन्मातः स्वस्थानं गच्छ पूजिते।संवत्सरे व्यतीते तु पुनरागमनाय च।।



जलमादाय – जल लय

ॐ साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारे भगवती श्रीसरस्वति पूजितासि प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्च्छ। ॐ लक्ष्मि पूजतासि प्रसीद क्षमस्व मयि रमस्व। श्रीगणेश पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।।

एवम् इन्द्रादिदशदिक्पालान् सूर्यादिनवग्रहान् कलशाधिष्ठितदेवताः पुस्तकानि लेखनीः, मस्याधारपात्राणि च विसृज्य देव्याश्चरणतो निर्माल्यमादाय-

एही प्रकारेँ इन्द्रादिक्पाल, सुर्यादि नवग्रह, कलशस्थित देवता, पुटक, लेखनी, दवात, आदि सभैक विसर्जन कय श्री सरस्वतीक चरण परहक निर्माल संहार मुद्रा सँ लय

ॐ ते सर्वे विलयंयान्तु मां हिंसन्ति हिंसकाः।
म्रत्युरोगभयक्लेशाः पतन्तु रिपुमस्तके।।

इति, एशान्यां क्षिपेत्

ई कहि ईशान कोनमे फेकि देथि.

ततः कुशत्रयतिलजलानि दक्षिणाद्रव्यं चादाय-
तखन दक्षिणाक हेतु द्रव्य राखि तेकुशा तिल जल लय
ॐ तत्सत् कृतौत्साङ्गसायुधसवाहन सपरिवार श्रीसरस्वती पूजनकर्मप्रतिष्ठार्थमेतावद्द्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्निदैवतम् यथानामगोत्राय ब्राहमणाय दक्षिणामहं ददे।।

इति ब्राह्मणाय प्रतिपादयेत।। ततः शान्तिकलशमुत्थापयेदनेन
दक्षिणा देथि. ब्राह्मण “ॐ स्वस्ति” कहि लेथि।
तखन अगिला मन्त्रेँकलश उठावथि

ॐ उत्तिष्ठ ब्रह्मास्पते देवयन्तस्ते महे।उपप्रयन्तु मरुतः सुदानव. इन्द्र प्राशुर्भवासवाः।।


इति उत्थाप्य “ॐ सुरस्त्वा” इत्याद्यभिषेकमन्त्रः पल्ल्वेन कलशजलमादाय पूर्वाभिमुखस्थितान्पुजाकार्ये सम्मिलितान्मानवानभिषिञ्चत्।। ततो नृत्यगीतवाद्यादिपुरस्सरं सरस्वत्यादि प्रतिमां जलाशयं नीत्वा जयनिर्घोषैः, अगाधजले प्रवाहयेत्। तद्दिने श्रीसरस्वतीप्रीत्यर्थं यथाशक्ति ब्राहमणान्भोजयेच्च
एहि मन्त्रेँ कलशकेँ घसकाय ठाढ़ भऽ पल्लव सँ कलशके जल लय पूवमुहँ ठाढ़ पूजामे सम्मिलित व्यक्तिके “सुरारत्वा” इत्यादि मन्त्र सँ अभिषिक्त करथि।
तखन नाचगान बाजा आदिक सङ्ग श्रीसरस्वतीक प्रतिमा नदी वा पोखरि लय जाय जय जयकार करथि अथाह जलमे भासावथि। ओहि दिन श्रीसरस्वतीक प्रीत्यर्थ यथाशक्ति ब्राह्मण कुमारिके खुआवथि।

इति श्रीसरस्वतीपूजाविधिः

टिपण्णी सभ

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Mithila Times: अथ वसन्तपञ्चम्यां सरस्वती पूजाविधिः
अथ वसन्तपञ्चम्यां सरस्वती पूजाविधिः
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